Kavita Gautam

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"भ्रम"भाग-5

"भ्रम"(भाग-5)

सुजाता के पिता और मां दोनों ही अपनी बेटी के भविष्य को लेकर बहुत ही चिंतित हैं। मन हीं मन वे सुजाता का विवाह दूसरी जगह करने का निश्चय करते हैं। लेकिन इस विषय पर उनका सुजाता से बात करना बेहद जरूरी है। उसकी हां के बगैर वे कोई भी फैसला नहीं ले सकते । इसलिए उन्होंने सुजाता को कुछ दिन के लिए अपने घर बुला लिया। और उन्होंने सुजाता को मनीष की मेडिकल फाइल को लाने के लिए भी कहा। सुजाता को कुछ ठीक नहीं लग रहा था। लेकिन मनीष की फाइल को वह ससुराल में छोड़ भी नहीं सकती थी ।
आने वाले समय में किसी भी समस्या से निपटने का एकमात्र साधन थी वो फाइल सुजाता के लिए। ये बात वो भली भांति जानती थी। सुजाता के अंदर इतनी चालाकी थी तो नहीं लेकिन परिस्थितियों ने उसे कुछ तो सीख दे ही दी थी। और इस बात से उसके ससुर जमुना लाल जी भी भली प्रकार परिचित थे कि जब तक सुजाता के पास वो फाइल है , तब तक वो उनके विपक्ष में आसानी से खड़ी हो सकती है।
लेकिन जमुना लाल जी ये भी जानते थे कि एक साधारण इंसान के लिए कोर्ट कचरी के चक्कर काटना भी तो आसान काम नहीं है। जमुना लाल जी जानते थे कि उनको किसी लड़की की जिंदगी से अपने बेटे की खुशी की खातिर इस प्रकार खिलवाड़ नहीं करनी चाहिए था। लेकिन कई बार सब कुछ जानते हुए भी इंसान दौलत के नशे में इतना डूब जाता है कि उसे अपनी खुशियों की खातिर किसी और का दुख दिखाई ही नहीं देता।

यही कारण था कि जमुना लाल जी और उनकी पत्नी रमा जी सुजाता के दुख से परिचित होने के बाद भी उस पर
अपना एहसान ही जता रहे थे। उन्होंने सुजाता को कई बार इस प्रकार समझाया की वो कभी इस रिश्ते को तोड़ने के विषय में सोचे भी नहीं। उन्हे लग रहा था कि सुजाता उनकी बात अच्छे से समझ गई है।

लेकिन ये उनका भ्रम था । बल्कि सुजाता तो अपने मन में पहले ही ये निश्चय कर चुकी थी कि चाहे उसका पति जैसा भी है वो उसका साथ कभी नहीं छोड़ेगी। अब जैसा भी है वही उसका भाग्य है। आखिर भाग्य का लिखा मिटा ही कौन पाया है। और ये भी सच था कि वो अपने पिता पर बोझ बनना नहीं चाहती थी। क्यों कि वो अच्छी तरह जानती थी कि वो इतनी पढ़ी लिखी भी नहीं है कि अपने पैरों पर खड़ी हो सके।

और वो इस बात से भी अंजान नहीं थी कि किसी भी लड़की के लिए शादी के बाद मायके में रहना कोई आसान काम तो नहीं होता।

हरी प्रसाद जी ने अपनी बेटी सुजाता से इस विषय पर खुल कर बात करना बेहतर समझा। अब वो कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाना चाहते जो उसके लिए परेशानियों का कारण बने।
उन्होंने सुजाता से कहा कि बेटा तुम्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। इस फाइल की बदौलत तुम्हें तलाक तो  मिल ही जाएगा। लेकिन सुजाता से दूसरे विवाह के विषय में बात करने की हिम्मत वो अब भी नहीं जुटा पा रहे थे।
सुजाता की मां इस बात को अच्छे से समझ रही थी। इसलिए उन्होंने खुद सुजाता से इस विषय पर बात करना उचित समझा। सुजाता को अपनी मां की बातें सुनकर कोई आश्चर्य नहीं हुआ । क्यों की जो परिस्थितियां उसके माता पिता के सामने थी उनमें कोई भी अपनी बेटी के लिए ऐसा ही सोचता।
सुजाता ने अपनी मां को समझाते हुए कहा कि मां आप मेरी फिकर ना करें। मैं ठीक हूं वहां।

मनीष के साथ अगर प्यार से पेश आया जाए तो उनका मूड सही रहता है।और अब तो उनका मुझसे बहुत अच्छा रिश्ता बन गया है।( सुजाता ने इस बात को अपनी मां से छुपा ही लिया कि वो कभी भी अपने पति पर निर्भर नहीं रह सकती बल्कि उसे अपने पति का हर पल सहारा बनना पड़ेगा।)

और वैसे भी मां क्या गारंटी है कि दूसरी जगह जाकर भी में सुखी रहूंगी। हो सकता है वहां पर कोई और समस्या हो जाए। इस तरह हम अपनी मुसीबतों से कब तक भागते रहेंगे। शादी कोई गुड्डे गुड़ियों का खेल तो नहीं है। ये तो जिंदगी भर का पवित्र बंधन होता है। कुछ पाने के लिए कुछ तो खोना ही पड़ता है ना ।

जब कि सुजाता अक्सर ये सोचती थी की,
" क्या सच में किसी की मजबूरी का फायदा उठा कर धोखे से बांधा गया बंधन पवित्र कहलाता है?"

लेकिन अपनी मां को इस बात की उसने भनक भी नहीं लगने दी और मन की बात को मन में ही छुपाकर कहने लगी.....
आप ही बताइए मां क्या आपने मेरे लिए ऐसे घर की कभी कल्पना भी की थी? नहीं ना !
ये बात आप से बेहतर कौन जानता है कि पैसा जिंदगी  को जीने के लिए बहुत जरूरी होता है। सुजाता ये जानती थी कि एक यही बात है जिसे बोलकर वो अपने माता पिता के मन से अपनी दूसरी शादी के खयाल को निकाल सकती है।
सुजाता के मुंह से ये बात सुनकर उसकी मां भी सोच में पड़ गई। और सोचने लगी कि शायद सुजाता सही कह रही है। उसे पिता के घर में भी कोई ऐसा सुख नहीं मिला कम से कम ससुराल जाकर अच्छी जिंदगी तो जी पाएगी। सुजात ने फिर एक बार अपने माता पिता को पैसे के मोह में फसा दिया।
हरी प्रसाद जी भी सोचने लगे कि क्या मैं वाकई अपनी बेटी की दूसरी जगह शादी कर के सही करूंगा?
चाहे कुछ ठीक हो या ना हो ,इतना तो तय है कि उसको और कहीं ऐसा रहन सहन तो नहीं मिल पाएगा। उन लोगों के पास इतना पैसा तो है ही की मनीष के कुछ भी ना कमाने के बाद भी सुजाता अच्छी जिंदगी जी पाएगी।

और फिर हरी प्रसाद  जी अपने बारे में सोचने लगे कि मेरे पास तो इतना पैसा भी नहीं है कि सुजाता की दूसरी शादी में बहुत सा दहेज दे कर उसका रिश्ता किसी ऊंचे घराने में कर सकूं। जैसा रिश्ता मैं उसके लिए ढूंढ पाऊंगा , हो सकता है कि वहां सुजाता को और भी परेशानियों का सामना करना पड़े।

" हमारे समाज की ये विडंबना ही है की ऊंचे घराने की कल्पना करने पर पैसे वाला घर ही दिखाई देता है। क्या सच में पैसा ही इंसान को उच्च और बड़ा बनाता है। निश्चिंत ही ये सोचने का विषय है परन्तु ये भी सत्य है की सोचना कोई भी नहीं चाहता।"

शायद इसी सोच के कारण ही आज सुजाता एक ऐसे दोराहे पर खड़ी थी जिसके एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई थी। रास्ता वो कोई भी अपनाए परेशानियों को तो उसे ही झेलनी था।

सुजाता के माता पिता को उसकी बातों से लग रहा था कि वो अपने ससुराल में खुश है। शायद वो पैसे को ज्यादा महत्व देने लगी है। इसके बाद उन्होंने सुजाता से कुछ भी कहना ठीक नहीं समझा।

सुजाता अपने ससुराल वापस आ गई। सुजाता और उसके घर वालों ने उसके ससुराल वालों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया तो जमुना लाल जी के लिए तो ये खुशी की बात थी। वो सोचकर मुस्कुरा रहे थे कि बिल्कुल वैसा ही हो रहा है जैसा उन्होंने सोचा था।

सुजाता की नजर में रिश्ते और इंसानियत भले ही महत्वपूर्ण थे लेकिन वो इस बात से भी अनभिज्ञ नहीं थी की पैसा भी जीवन में कम महत्व नहीं रखता। अगर उसके पिता के पास पैसा होता तो क्या उसकी शिक्षा में कोई रुकावट आती। और अगर वो अच्छी पढ़ी लिखी होती तो उसके ससुराल वालों ने उसकी जिंदगी से जो खिलवाड़ किया है क्या वो कर पाते??

" हो सकता है कि किस्मत तब भी उसके साथ वही करती जो हुआ है। लेकिन तब शायद उसे अपनी किस्मत से समझोता तो नहीं करना पड़ता। वो कोई भी निर्णय अपने मन से लेने के लिए स्वतंत्र होती। किसी पर बोझ तो नहीं बनती।"

" लेकिन इस समस्या का दूसरा कारण अधिक बच्चे पैदा करना  भी था। अगर वो पांच के बजाय कम भाई बहन होते तो शायद उसे भी पढ़ाई करने का मोका मिल जाता। और ये भी एक कड़वा सच है कि बेटे की खातिर अधिक बेटियों का पैदा होना उनके हक को कहीं दबा देता है।
ऐसे में एक पिता अपनी बेटियों के दहेज के लिए पैसा जोड़े या उनकी पढ़ाई पर खर्च करे ??"

"जो लोग समर्थ है वो तो इस समस्या से पार पा जाते है। लेकिन कुछ लोग इस समस्या के कारण और भी अनेक समस्याओं से घिर जाते हैं।"

सुजाता के इस निर्णय में एक मजबूरी शामिल थी तो वहीं एक अच्छी बहू बनने में उसके संस्कार भी शामिल थे।
और उसने खुशी खुशी अपनी जिंदगी से समझौता कर लिया। सुजाता एक अच्छी बहू का फर्ज बखूबी निभा रही थी। उसके व्यवहार में कोई बदलाव नहीं था। लेकिन रमा जी को अब सुजाता के अंदर एक मजबूर लड़की नजर आने लगी। जिसके लिए उनके खिलाफ कोई भी कदम उठाना आसान नहीं था। अपनी गलती मानने के बजाय वो सुजाता पर अपना एहसान कभी कभी जाता ही देती।

"आखिर पैसों का घमंड भी तो कोई चीज होता है जिसमें इंसान को भले और बुरे का कोई ज्ञान नहीं रहता।" इसीलिए सुजाता को अपने घर की बहु बनाना उनके लिए उस पर किया गया एहसान ही था।

अब सुजाता को अपने जीवन से किसी खुशी की कोई उम्मीद तो नहीं थी लेकिन कहते है ना की भगवान के घर देर हो सकती है अंधेर नहीं। शायद अभी भी सुजाता के जीवन में कोई खुशी तो थी जो अभी बाकी थी।

क्रमश: अगले भाग में.....

कविता गौतम... ✍️


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4 Comments

Khushi jha

24-Oct-2021 02:34 PM

वाह

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Swati chourasia

21-Oct-2021 06:28 PM

Very beautiful 👌

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Seema Priyadarshini sahay

21-Oct-2021 06:20 PM

बहुत खूबसूरत रचना का भाग

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